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Saturday, December 18, 2010

ज्ञान की देवी

संगमरमरी बाहे उसकी

तन फूलो की ड़ाल !

नैन उसके जादू भरे

मुख चाँदी की थाल !

कुंदन जैसे ओंठ रसिले

रेशम जैसे बाल !

चंदा-सूरज छुप जाय

देख क़े गोरे गाल !

उसके दर्प की माया से

आँखे है लालो-लाल !

बहती नदिया को शर्माए

मस्त पवन की चाल !

सुंदर सुंदर गीत मिलन क़े

मधुर -मधुर सुरताल !

वसंत पग पग नाचे

मौसम खेले हाल !

वह मेरे ज्ञान की देवी

मै उसका महिपाल !

Friday, December 17, 2010

वाह...!!


क्या पूछा-

क्या करता है ये बंदा

कुछ मत पूछो,

अच्छा नहीं ये धंदा !

कई लोगो ने मिलकर

कर दिया इसे गन्दा !

चल रहा है आजकल

बहुत ही मंदा !

बच्चा था, जब

तब माँगा करता था चंदा !

जवानी में पिता की आशाओ

पर फिर कर रंदा

बंदा, आज भी

माँगा करता है चंदा !


Wednesday, December 15, 2010

सत्यानुसत्य


मनुष्य को सुख

कैसे मिलेगा.....?

नेता ने कहा-

मशीन बैठाओ

वस्तुओ की कमी है

उत्पादन बढाओ

उपकरणों की ताकत बढाओ

धन की वृद्दि करो !

फकीर ने कहा-

बाहर नहीं ; भीतर देखो

दूर करो,

मन से हिंसा को

क्रोध और द्वयेश को

मत सोचो-

आराम की बात

मिथ्या की बात

सोचो-

प्रेम की बात

आत्मतोषण की बात

और अंत में

फकीर को गोली

मार दी गयी !

नेता.......!!!


Tuesday, December 14, 2010

कह अपनी


अनबोले तारो सा सब
छुट जाता !
तुम न देते साथ तो
ये मन टूट जाता !
मानता हो ;दबा हूँ
तुम्हारे एहसानों तले
फिर भी न समझना हमे
जैसे कुत्ता पले !
मानव, मानव पर एहसान
नहीं करेगा,
तो क्या वह
दशमुखी रावण करेगा !
हम न रहे तुम्हारे साथ
तो क्या हुआ,
हमारा दिल तो सदा
तुम्हारा ही रहेगा !

Monday, December 13, 2010

अनकहनी...!

पियूष उघडे हुए माता

दूध पिलाती जाती है .....

लेकिन

किस आशा पर ;

यही, न कि

बेटा अंतिम समय

अवश्य पिलाएगा

दो बूँद

पानी क़े......!!

Friday, December 10, 2010

रवि और कवि.....!

नमस्कार ओ रवि....

तू कौन ?

मै एक कवि !

मै वहा पहुच जाता हूँ

जहा तुम नहीं पहुच पाते हो !

उसने कहा -

क्यों अपने आप को को बहलाते हो !

व्यर्थ ही ख्वाबी महल बनाते हो !

अरे, तेरी तो गन्दगी में

जीने की आदत है !

शराफत तुझमे नदारत है !

तू तो है एक निरीह प्राणी !

मेरे सामने तेरी क्या सानी !

अरे जा - कहा राजा भोज

कहा गंगू तेली !

मत कर मुझसे अठखेली !

किस मूर्ख ने कहा है कि..

जहा न पहुचे रवि

वहा पहुचे कवि

अरे मैंने उसे चाय नहीं पिलाई थी !

थोड़ी सी भाँग मांग रहा था ,

वह भी नहीं खिलाई थी !

तूने उसे चाय पिलाई होगी

भाँग भी खिलाई होगी

भाँग क़े नशे में वह

कह गया होगा !

किन्तु मेरा दावा है ...

आज अपने आप पर रो रहा होगा !


Wednesday, December 8, 2010

स्वर्ग....?

बिदाई की थी घड़ी

द्वार पर डोली खड़ी

माँ की सिसकिया थमने का नाम न ले रही थी

बिटिया न जाने क्यों मंद मंद मुसक्या रही थी

माँ बोली -

बेटी कभी कोई गलत काम न करना

मेरे दूध की तुम लाज रखना

बिटिया बोली -

माँ, तुम चिंता न करना

जी अपना हलकान न करना

मै जिस घर में जाउगी

उस घर को स्वर्ग बना दूगी

जाहिर है कि घर वालो को

स्वर्गवासी बना दूगी...!!


Monday, December 6, 2010

समग्र क्रांति

क्रांति की खोज में निकला
जब अंतिम घुड़सवार भी
सुविधा का ताबीज बाधंकर
कुर्सियों क़े जंगल में खो गया
मैंने पूछा था नेताजी -
आप की दूसरी आजादी को क्या हो गया था ?
राजनीति ऑपरेशन टेबल पर पड़ी थी
दुर्भाग्य की उमर बड़ी थी
फरेबी डॉक्टर
आश्वासनों क़े इंजेक्शन पर इंजेक्शन लगाये जा रहे थे
भ्रस्टाचार क़े
कैप्सूल पर कैप्सूल खिला रहे थे
देश का भविष्य सो गया था
और भाई -साब
आप से क्या बतलाये
स्वतंत्रता की समग्र क्रांति का
एबार्शन हो गया था !

Monday, November 29, 2010

Why we are more conscious about our children?

It is rather more difficult to answer, especially for a reason that so many factors are involved in it. If we go little behind to our own childhood, still we remember that between five children, it was very difficult for our parents to pay that much attention, which was expected at that time from them. Even today I remember when I was in seventh standard. That was the day of my final exams results. However, I stood first in the class and just ran towards my home to tell them about my success because at that time it was very biggest thing for me. When my report card was in my father’s hand, to my surprise he told me that very first time he came to know that I was in seventh standard.

Now, just imagine regarding the happiness of that child whose father was not aware about the son that in which class he was studying. So as the days passed and we were in place of our father, we have decided that history should not repeat. That was the very first factor, which I took it very seriously.

Regarding other factors, the same can’t be narrated at a time. In fact, what I have observed now a days that parents are very conscious. That is not a case but these things are related with their feeling. They might be thinking about the facilities, which were not available to them at that time when they were kids. It is very obvious, as every parent like their kid very much, as he or she may be which a universal truth is.

However, we should be little bit conscious before providing ample facilities. It may be possible that their some demands may no be having that much importance or such demands may be only due to reason that some other guy is having it. At this juncture, it is our duty to let them explain regarding the needs of the thing which they are demanding for. It is our duty to realize them about our hard earned money. It’s very true that we are having lot to do for them but before fulfilling it, little care must be taken.

क्या करे अब....?

अपने ही हाथो से अपना घर जला दिया,
अब औरो क़े घर क़ी आग बुझा रहे है..!


खुद को पता नहीं अपनी गली का रास्ता,
भूलो को घर का रास्ता दिखा रहे है..!!


साकार ना हो सका स्वप्न झोपड़ी बनाने का,
सपनो में वे ही ताजमहल बना रहे है..!


कल ही तो ओले बरसे थे बस्ती में,
आज फिर से अपना सर मुडा रहे है..!!


पहले तो एक चिराग से बदला ले लिया,
अब सूरज को दीया दिखा रहे है..!


भगवान पर एहसान जताने लगे है,
इमान - धरम भी अब दुकान से ले रहे है..!!

Friday, November 19, 2010


एह्सास ....!

(1)

भागता जाता हूँ
भाग रहा हूँ ....
कभी कमाने क़े लिए ...!
कभी पचाने क़े लिए...!!


(2)

भागते चले गए,
आगे बढ़ने की चाह में ....!
पलट कर भी न देखा ,
क्या मिला आये हम खाक में ....!!


(3)

भागते....भागते थक गया
न जाने कैसे खो गया
आँख खुली , कुछ न नज़र आया
साथ छोड़ गया अपना ही साया ...?