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Friday, December 10, 2010

रवि और कवि.....!

नमस्कार ओ रवि....

तू कौन ?

मै एक कवि !

मै वहा पहुच जाता हूँ

जहा तुम नहीं पहुच पाते हो !

उसने कहा -

क्यों अपने आप को को बहलाते हो !

व्यर्थ ही ख्वाबी महल बनाते हो !

अरे, तेरी तो गन्दगी में

जीने की आदत है !

शराफत तुझमे नदारत है !

तू तो है एक निरीह प्राणी !

मेरे सामने तेरी क्या सानी !

अरे जा - कहा राजा भोज

कहा गंगू तेली !

मत कर मुझसे अठखेली !

किस मूर्ख ने कहा है कि..

जहा न पहुचे रवि

वहा पहुचे कवि

अरे मैंने उसे चाय नहीं पिलाई थी !

थोड़ी सी भाँग मांग रहा था ,

वह भी नहीं खिलाई थी !

तूने उसे चाय पिलाई होगी

भाँग भी खिलाई होगी

भाँग क़े नशे में वह

कह गया होगा !

किन्तु मेरा दावा है ...

आज अपने आप पर रो रहा होगा !


2 comments:

  1. रवि और कवि दोनो को प्रणाम । अच्छी रचना । शुभकामनाएं ।

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