नमस्कार ओ रवि....
तू कौन ?
मै एक कवि !
मै वहा पहुच जाता हूँ
जहा तुम नहीं पहुच पाते हो !
उसने कहा -
क्यों अपने आप को को बहलाते हो !
व्यर्थ ही ख्वाबी महल बनाते हो !
अरे, तेरी तो गन्दगी में
जीने की आदत है !
शराफत तुझमे नदारत है !
तू तो है एक निरीह प्राणी !
मेरे सामने तेरी क्या सानी !
अरे जा - कहा राजा भोज
कहा गंगू तेली !
मत कर मुझसे अठखेली !
किस मूर्ख ने कहा है कि..
जहा न पहुचे रवि
वहा पहुचे कवि
अरे मैंने उसे चाय नहीं पिलाई थी !
थोड़ी सी भाँग मांग रहा था ,
वह भी नहीं खिलाई थी !
तूने उसे चाय पिलाई होगी
भाँग भी खिलाई होगी
भाँग क़े नशे में वह
कह गया होगा !
किन्तु मेरा दावा है ...
आज अपने आप पर रो रहा होगा !
रवि और कवि दोनो को प्रणाम । अच्छी रचना । शुभकामनाएं ।
ReplyDeleteशुक्रिया।
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