साकार ना हो सका स्वप्न झोपड़ी बनाने का,
सपनो में वे ही ताजमहल बना रहे है..!
कल ही तो ओले बरसे थे बस्ती में,
आज फिर से अपना सर मुडा रहे है..!!
पहले तो एक चिराग से बदला ले लिया,
अब सूरज को दीया दिखा रहे है..!
भगवान पर एहसान जताने लगे है,
इमान - धरम भी अब दुकान से ले रहे है..!!
Very good sir jee
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